मन से सोचे हुए कार्यो को वाणी द्वारा प्रकट नही करना चाहिये,परंतु मनपुर्वक भली प्रकार सोचते हुये उसकी रक्षा करनी चाहिये और चुप रहते हुए उस सोची हुई बात को कार्यरूप मे बदलना चाहिये |
आचार्य चाणक्य का कहना है कि, व्यक्ती को कभी किसी को अपने मन का भेद नही देना चाहिये | जो भी कार्य करना है,उसे अपने मन मे रखे और समय आने पर पुरा करे | कुछ लोग किये जाने वाले कार्य के बारे मे गाते रहते है | इस प्रकार उनकी बात का महत्व कम हो जाता है यदि किसी कारणवश वह व्यक्ती पुरा न कर सके तो उसकी हसी होती है | इससे व्यक्ती का विश्वास भी कम होता है| फिर कुछ समय बाद ऐसा होता है की लोग उसकी बातो पर ध्यान नही देते| उसे बे सिर-पैर कि हाकने वाला समझ लिया जाता है| अतः बुद्धिमान को कहने से अधिक करने के प्रती प्रयत्नशील होना चाहिये|
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